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.…………………क्या लिखे, कुछ लिखने के लिए अब हिम्मत नही होती है, यूँ कहे की दिल अब रोता है अब हर पल डर बना रहता है, आगे कही हमारे साथ कुछ गलत ना हो जाये ……घर से बाहर निकलते है तो पता नही रहता है की घर वापस आ पायेगे की नहीं ….दिन हो या रात खॊफ़ का साया हमेशा रहता है …आखिर अपने आप को छुपाओ तो कहा छुपाओ, हम लडकिया जाये तो कहा जाये…?
दिन पर दिन बढती छेड़खानी ,बलात्कार आदि महिलाओ और लड़कियों के प्रति हिंसा का मूल कारण क्या है की हम लड़कियों है? बस इसीलिए हमें बचपन से अपने मर्यादा से रहना सिखाया जाता है ,हमें बचपन ये यही सिख दी जाती है की हम लक्ष्मन रेखा पार न करे ,लेकिन लड़को को ये बातें क्यों नही सिखाई जाती है , क्यों नही बचपन से लड़को को ये बताया जाता है की लड़कियों का सम्मान करो उन्हें इज्ज़त दो ….. अगर लड़कियों को मर्यादा में रहना सिखाया जाता है तो लड़को को भी…लड़कियों का सम्मान करना भी सिखाया जाना चाहिए ….|
हमारे समाज में लड़कियों के पहनावे से लेकर उसके व्हवार तक में अंकुश लगाया जाता है लेकिन लड़को को क्यों नही इन सब चीजों पर रुक लगाईं जाती है …इसीलिए क्यूंकि वे लड़के है…..वो चाहे कुछ भी कर ले उन्हें कोई कुछ नही बोलेगा ……और तो और लड़कियों को ये तक सलाह दी जाती है की रात में बाहर मत जाओ ..क्यूंकि हमारे साथ कुछ भी हो सकता है पर हमारा समाज लड़को को क्यों नही रोकता है रात को घुमने से क्यूंकि वो लड़का है और उसे कुछ नही हो सकता है पर हमारा समाज ये क्यों नही सोचता है की वही लड़का रात बर घूम कर किसी लड़की का बलात्कार भी कर सकता है क्या हमारा समाज संवेदनहीन हो गया है जिसमे कोई चेतना नहीं है |
कुछ नेता हमारे कह रहे है की ये सब पश्चिम सभ्यता का प्रभाव है लेकिन उनके देशो में तो लड़के लड़कियों में भेद -भाव नही किया जाता है तो उनके सभ्यता का प्रभाव कैसे हमपे पड़ा , असल में हम जिस समाज जी रहे है …वो ना तो पश्चिम समाज से तालुक रखता है और ना ही भारतीय समाज से….हमारा भारतीय समाज कही खो गया है ……हमारा प्राचीन भारत लड़कियों और महिलाओ में भेद भाव नही करता था बल्कि पुरे दुनिया में सबसे उच्च स्थान हमारे प्राचीन भारत की लडकियों व् महिलाओ का ही था लेकिन बदलते समय ने लड़कियों के प्रति नज़रियो को भी बदल दिया …और आज उसका असर देखा जा रहा है …..पर इस बात से इनकार नही किया जा सकता है की लड़कियों बहुत आगे बढ रही है और नयी नयी मंजिलो को प्राप्त कर रही है…..लेकिन समाज का एक तबका लड़कियों व् महिलाओ के प्रति अपने नज़रियो को बदलने की कोशिश नही कर रहा है यूँ कहे की करना की नहीं चाहता है तो कहा से रुखेगी ये सब हिंसा ….सिर्फ कड़ा कानून बना देने से कुछ नही होगा , हमारे समाज की सोच को बदलना पड़ेगा और हम बेटिया जीना चाहते है ,आजाद में रहना चाहते है हम सकड़ पर चले तो बिना किसी डर के ……पर क्या कभी ऐसा हो सकता है ? क्या कभी हमारा समाज बदलेगा ? क्या हम लडकिय कभी आजाद हो पायेगे ? क्या हम बिना डरे घर से बाहर निकल पायेगे?……
और अगर ऐसा नही होता है तो हम बस इतना कहना चाहते है की “अगले जनम मोहे बिटिया ना कीजो “.
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