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जंगल का काशी (एक काल्पनिक कहानी )

कलम की आवाज़ से
कलम की आवाज़ से
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करीब २०० साल पहले एक धनवीर नाम का राजा रहता था वो मवद नगर का राजा था जिसका आधा हिस्सा जंगले से भरा था राजा धनवीर के दो संतान थे एक बड़ा पुत्र जिसका नाम शुबान और एक पुत्री जिसका नाम शुबिना था, शुबिना जब १० साल की थी तभी उसकी माँ उसके माँ भगवान को प्यारी हो गयी थी…..तब से शुबिना को उसके पिता बड़े ही प्यार से पालते थे और उसकी हर ज़रुरतो को पूरा करते थे |

राजा धनवीर के नगर में सब अच्छा था शांति और समृधि दोनों था और सारी प्रजा राजा के आज्ञा का पूरा पालन करता था और सबको विस्वास था की उसके राजा बहुत अच्छे पालक है लेकिन राजा धनवीर के इस अच्छे होने के पीछे बहुत बड़ा राज़ था एक तरफ तो वह प्रजा की सेवा करता था तो दूसरी तरफ नगर में फेले जंगले में उसका दूसरा चेहरा , राजा धनवीर जंगले में बसे जानवरों का शिकार करता था ,शिकार करना तो उस समय तो आम बात थी लेकिन राजा धनवीर शिकार करके जानवरों को पिंजर में डालता था और उसे उसे बेच देता था और खतरनाक जानवरों को मार डालता था …..और उस वक़्त बड़ी संक्या में जानवर गायब हो रहे थे…….और प्रजा के सवाल पूछे जाने पर वो मुखर जाता था और पता लगाने के लिए कहता था और इसके बारे में राजकुमारी शुबिना को कुछ भी नहीं पता था |

जब शुबिना 16 साल की थी तो उसका भी मन किया शिकार पर जाने का लेकिन राजा धनवीर अपनी पुत्री को जाने से मना कर दिया लेकिन शुबिना ने तो जैसे ठान ही लिया था की वो जाकर ही रहेगी इसीलिए वो नोकरानी के वेश में अपने भाई के पीछे पीछे चली जाती है,, पहुचने पर शुबिना वहा का नज़ारा देख कर डर जाती है और जानवरों का इस तरह से पिंजरों में केंद करना और मार डालना उसे अच्छा नहीं लगा , शुबिना वही पेड़ के पीछे रहती है की तबतक उसके भाई को अहसास होता है की पीछे से उने कोई देख रहा है…..तभी एक राजकुमार शुबान का सेवक उसको देख लेता है और शुबिना को अनजान समझ कर चिलाने लगता है तबतक शुबिना वहा से भाग जाती है लेकिन शुबान के कहने पर उसके सेवक उसका पीछा करते है……शुबिना भाग रही होती है……तबतक वो जंगलो में भटक गयी रहती है और उसे समझ में नहीं आता है की वो किदर जाये और अपनी पहचान बता नहीं सकती ……..तबतक सेवक आ ही रहे होते है की तबतक राजकुमारी शुबिना को एक घोडा सवार शख्स उसे वहा से उठाते ले जाता है,,,

शुबिना समझ ही नहीं पाती है……की कौन है……..उस शख्स के इस तरह से उठाए जाने पर वो बहुत गुस्सती है……
वो शख्स उसे अपने झोपड़ी में ले जाता है…….और वही उतार देता है……शुबिना बहुत गुस्साती है और कहती है……
शुबिना — आप है कौन और हिम्मत कैसे हुई मुझे इस तरह से उठाने की आप है कौन……

थोड़ी देर तक वो शख्स कुछ भी नहीं बोलता है……..
शुबिना— आप बोलते क्यूँ नहीं मुझे जवाब चाहिए……..
शख्स —- आप थोड़े वक़्त के लिए चुप नहीं रह सकती है जब से ले आया हो तबसे बोली जा रही है……..एक तो मैंने आपकी जान बचाई और ऊपर से आप मुझ पर चिला रही है……

शुबिना– देखिये इसके लिए में आपका शुक्रियादा करती हो……लेकिन आप है कौन आपका नाम क्या है और आप इस जंगल में अकेले क्यों …….

शख्स — बस एक ही बार में कितना सवाल पूछेगी …मेरा नाम सहजाद है और मै इन जंगल में अपने साथी के साथ रहता हो……..
शुबिना– साथी लेकिन यहाँ तो कोई नहीं है……..
सहजाद — है ना काशी काशी …..देखो तुमसे कोई मिलने आया है……

शुबिना काशी को देखकर डर जाती है क्यूंकि वो कोई इंसान नहीं एक जानवर बाघ रहता है……शुबिना डर के मारे चिलाने लगती है और इधर उधर भागने लगती है और बाघ भी उस पर अपना गुस्सा दिखाने लगता है……तबतक सहजाद काशी को को चुप करवाता है और शुबिना से शांत रहने के लिए कहता है …..शुबिना उससे बाघ को रखने का कारन पूछती है तो सहजाद उससे बताता है की वह उसे बचपन से पाल रहा है तबतक सहजाद उससे अपने बारे में पूछता है ‘ की तुम कौन हो और क्यूँ जंगल में इस तरह से अकेली घूम रही है’……लेकिन शुबिना अपने राजकुमारी होने की पहचान छुपाती है……और कहती वो इसी नगर की निवासी है और जंगल में भटक गयी थी ……. तब सहजाद उसे नगर वापस छोड़ देता है और शुबिना अपने महल चली जाती है…….वह बार बार जंगल में हुए जानवरों के साथ घटना के बारे में सोचती है…और शुबिना डर के मारे पिता से ये सब नहीं पूछ पा रही थी……..

कुछ समय बाद शुबिना अपने सहेलियों के साथ नगर में घुमने जाती है…….तो उसकी आचानक उसकी नज़र सहजाद पर पड़ती है लेकिन वो राजकुमारी के वेश में उससे मिल नहीं सकती थी..इसीलिए अब शुबिना अक्सर नोकरानी के वेश में नगर में जाती और सहजाद से मिलती ………वह दोनों आपस में बातें करते है……और धीरे धीरे दोनों में दोस्ती बढने लगती है…और शुबिना ने अपना नाम सहजाद को यशोदा बता दिया ……..और इसी तरह सहजाद ने अपने बाघ काशी की पहचान भी भी शुबिना से करवा दिया ……..और काशी भी उसे पहचानने लगा……

एक दिन शुबिना अपने कक्ष में रहती है तबतक उसे अपने भाई की चीख सुनाई देती है….वह भागती हुई जाती है तो उसका भाई ज्क्मी रहता है और अपने भाई को खून से लटपट देखकर डर जाती है और राजा धनवीर और शुबिना इसका कारन पूछते है तो शुबान बताता है की जंगल में कोई लड़का उस पर हमला बोल दिया और उसके पास के बाघ भी था…….
अपने भाई से ये सब सुनते ही शुबिना पहचान जाती है की सहजाद ने ये सब किया है….लेकिन वो समझ नहीं पाती आखिर क्यूँ सहजाद ने ऐसा किया ……..तबतक राजा धनवीर बहुत गुसाते है और पुरे जंगल में उसको खोजने के लिए अपने सेवको को भेजते है……..लेकिन रात बर की खोजाई के बाद भी वह नहीं मिलता है……सुबह होते ही शुबिना उसके झुपडी में जाती है और राजकुमार शुबान पर हमले के बारे में पूछती है…….लेकिन सहजाद कहता है की ” आपको कैसे पता की शुबान पर हमला मैंने किया है……शुबिना अपनी पहचान छुपाने के लिए झूठ बोल देती है की वो राजकुमारी शुबिना की सहेली है …और उसने ही मुझे बताया है की कोई जंगल में रहने वाला राजकुमार शुबान पर हमला किया है और उसके पास बाघ है और इसीलिए आपने वो हमला किया है क्यूँ आप ने ऐसा क्यूँ किया ..क्यूँ…..सहजाद गुस्से से यशोदा को बताता है राजा धनवीर जंगल में रह रहे जानवरों को शिकार करता है और उने बेचता है ताकि उसे धन मिल सके और मैंने इसीलिए….राजकुमार शुबान पर हमला किया …..

शुबिना ये सब सुनकर चोंक जाती है और वो सहजाद को वहा से जाने के लिए कहती है लेकिन सहजाद जाने के लिए तेयार नहीं होता है ……जंगल में दोनों की बात करते वक़्त राजा धनवीर का सेवक सुन और देख लेता है और ये सब बातें जाकर राजा धनवीर को बता देता है …और वो बहुत गुस्साते है और शुबिना के आने पर उससे पूछते है..लेकिन शुबिना भी अपने पिता जी से सवाल करती है आखिर क्यूँ वो जानवरों का शिकार करते है और उने बेचते है ..शुबिना के इस बर्ताव से राजा धनवीर बहुत गुस्साता है और उसे जोर के तपड़ मार देता है…..और उसे उसके ही कक्ष में बंद कर देता है….अगले दिन सहजाद की खोजाई होती है और उसे पकड़ कर सारे मवद नगर वासियों के सामने लाया जाता है……इधर राजा धनवीर अपने पुत्र और पुत्री को बुलाते है…..सहजाद यशोदा को वहा देखकर चोंक जाता है की यशोदा ही राजकुमारी शुबिना है और उसे लगता है की यशोदा ने उसे धोखा दिया है और उसी के वजेय से वह पकडाया है और वो वही पर गुमसुम सा हो जाता है और ना कुछ सोच पता है और कुछ कह पता है और इधर उसके बाघ को उससे अलग कर दिया जाता जाता है काशी बहुत चिल्लाता है और उसे अंदर ले जाया जाता है और वो चिल्लाता है लेकिन थोड़ी देर बाद उसकी आवाज़ आना बंद हो जाता है और सहजाद को लगता है सब काशी को मार दिया ,, सहजाद भी गुस्से राजा धनवीर पर गुस्सा उतार है ..शुबिना ये सब देखि नहीं पाती और चाह कर भी कुछ नहीं कर पाती है ……………..
और उसके आख से आंसु निकलने लगता है…………

राजा धनवीर उसे सबके सामने जंगल में से जानवरों का गायब होने का कारन सहजाद को घोषित कर देते है….और उसे मृत्योदंड दे दिया जाता है…….सहजाद को जब फासी पर चडाया जाता है की तबतक उसका घोडा भीड़ में से आते हुआ अपने मालिक को बचा लेता है और सहजाद घोड़े पर सवार होकर वहा से भाग निकल लेता है तबतक राजकुमार शुबान और उसके सेवक उसका पीछा करते है…….और इधर शुबिना सहजाद के पीछे जाने की कोसिस करती है लेकिन वो नहीं जा पाती है क्यूंकि उसके पिता उसे रुक लेते है… और इधर सहजाद एक झील के किनारे पहुच जाता है और उसका पीछा करते करते राजकुमार शुबान झील के किनारे पहुच जाता है लेकिन सहजाद अपनी जान बचाने के लिए झील में ऊपर से घोड़े सहित कूद जाता है…….और सब समझते की इतनी ऊपर कूद कर वह मर गया होगा राजा धनवीर का वही पुराना काम फिर शुरू हो जाता है…और इधर शुबिना को ये खबर दे दिया जाता है की सहजाद मर गया ये खबर सुनते ही शुबिना छु सी हो जाती है …..
उसे 1 साल तक केंद में रखते है और फिर उसको बाहर लाते है शुबिना की ज़िन्दगी जैसे थम सी जाती है और वो हमेशा सहजाद के बारे में ही सोचने लगती है राजा धनवीर एक पिता होने के नाते उसको माफ़ कर देते है…. ………..शुबिना के केंद से बाहर आने के 2 साल बाद जब शुबिना 19 .साल की हो जाती है ..तो ..एक दिन वो अपनी सहेली के साथ नगर घुमने निकलती है ……तो उसका मन जंगल की तरफ करता है जाने में लेकिन उसकी दोस्त मना करती है की जंगल में खतरा हो सकता है लेकिन फिर भी शुबिना जाती है…..वह जाती है और उसी जगह जाती है जहा सहजाद का झुपड़ी था ,,और शुबिना सहजाद के साथ बिताये पलो को याद करने लगती है …..और कहती है “काश सहजाद जिन्दा होता “……तबतक पीछे से आवाज़ आती है…..” क्या हुआ राजकुमारी शुबिना सहजाद को याद कर रही है ” शुबिना तुरंत पीछे मोड़ती है तो उसको देखती ही रह जाती है वो कोई और नहीं सहजाद ही रहता है और राजकुमारी शुबिना उसे देखती ही रह जाती और पहचान जाती है की वो सहजाद है और थोड़ी देर के लिए माहोल शांत सा हो जाता है और शुबिना बिना कुछ सोचो उसके पास भागते हुए गले लग जाती है ….और रोने लगती है और कहती है आप कहा थे अब तक ….सहजाद आप जिंदा है ……सहजाद गुस्से से उसे अपने आप से अलग करता है और उसे बुरा भला कहता है शुबिना उसे समझाती है लेकिन वो नहीं समझता है …फिर सहजाद वहा से जा ही रहा होता है की शुबिना उससे कहती है……की ” सहजाद काशी जिन्दा है ” शुबिना के इतना कहने पर सहजाद के कदम रुक जाते है और वो शुबिना के पास जाता है और ख़ुशी से काशी के बारे में पूछता है शुबिना उसको बताती है की काशी को मारा नहीं गया था बल्कि उससे पिंजरे में केंद रखा गया है और वही उसका देखभाल करती थी ……इतना सुनने के बाद सहजाद काशी को वापस लाने को सोचता है और वो शुबिना से कहता है की ” राजकुमारी शुबिना मैंने आपके पिता को माफ़ नहीं किया और ना करुगा और मैं अपने आप को निर्दुष साबित करके रहूगा …..और काशी को लेकर ……..थोड़ी देर बाद शुबिना कहती है …..” और मुझे ” सहजाद उसको देखने लगता है

सहजाद उसके इस बात पर चोक जाता है और बिना कुछ कहे वहा से चला जाता है ……..और शुबिना उसको जाते देखती ही रह जाती है कुछ समय बाद राजा धनवीर एक खेल का आयोज़न करता है जिसमे ये शर्त रहता है की इस खेल को जो भी जीत जायेगा तो उसे वही मिलेंगा जो वो चाहेगा…..इस खेल की सुचना सहजाद के पास भी जाता है और उसके पास यही रास्ता रहता है राजा धनवीर से काशी वापस पाने का और साथ ही साथ राजा धनवीर की सच्चाई मवद नगर वाशियों के सामने लाने का ……..सहजाद अपनी पूरी तेयारी करता है ये खेल पूरी तरह से जितने का और साथ ही ये पता करता है की आखिर राजा धनवीर ने सारे जानवरों कहा छुपा रखा है और किसे किसे देता था और उसके काले धन का भी पता लगा रहा था …….. |

आखिर वो दिन आ ही गया रहता है खेल में सभी को एक हाथी से मुकाबला करना होता है जो काफी बड़ा और मज़बूत रहता और एक जंगली हाथी रहता है ……खेल की प्रारंभ होता है हो गया रहता है सब खिलाडी खेलते है ……लेकिन कोई भी उस हाथी को चित नहीं कर पता है और आखिरी में सहजाद आता है लेकिन वो नकाब पहना रहता है और कोई उसे पहचान नहीं पाता है ……….सहजाद जीत जाता है ……..और राजा धनवीर बहुत खुश होता है और सहजाद इस जीत के बदले में बाघ को मागता है जो कला बाज़ी जानता हो और पालतू हो ….राजा धनवीर को उसकी मांग पूरी ही करनी पड़ती है और वो अपने सेवको को बाघ काशी को लाने के लिए कहते है तबतक शुबिना को पता चल जाता है की वो सहजाद है ……..बाघ सहजाद के पास आता है और सहजाद उसे देखकर बहुत खुश होता है …….लेकिन बाघ काशी अपने मालिक को पहचान लेता है और ख़ुशी से उछलने लगता है …..तबतक उसका नकाब उतर जाता है और राजकुमार उसे पहचान लेता और उसे जिंदा देखकर हक्का पक्का रह जाता है और कसके चिल्लाता है की वो सहजाद है और वो खुद और सेवको के साथ उसे रुकने जाता है लेकिन इस बार सहजाद को कोई नहीं पकड़ पाता है और वो अकेले ही सब से लड़ लेता है वो शुबान पर हमला कर ही रहा होता की तबतक शुबिना उसको आकर रुख लेती है और जाने को कहती है ..लेकिन सहजाद अपनी पूरी तेयारी के साथ आया रहता है उधर से उसके साथी सब पिंजरे में केंद सारे जानवरों को उठा कर ले जाते है और इधर सहजाद अपने काशी को ……सारे केंद जानवरों को महल से बाहर ले आया जाता है क्यूंकि जानकारी होने पर सहजाद पहले से ही अपने साथियो को महल में घुसने के लिए कह देता है ……और कामयाब भी होता है धीरे धीरे नगर वाशियों को पता चलता है की राजा धनवीर ही जानवरों का शिकार करता था क्यूंकि …….जानवरों का इस तरह से महल से बाहर निकलना राजा धनवीर की तरफ शख का इशारा कर रहा था और सब उस पर इलज़ाम लगाने लगते है ….और गुस्साते है …….तबतक सहजाद वही खेल के मैदान में से ही राजा धनवीर की असलियत सब के सामने लता है ……और यहाँ तक की उसके काले धन को भी प्रजा के सामने लाता है ……राजा धनवीर अपना इस तरह से अपमान होता नहीं देख पाता है और वो ……. सहजाद पर हमले की …..घोषणा के देता है ……..तबतक सहजाद वहा से अपने घोड़े के साथ भाग रहा होता है …..की तबतक उसकी नज़र शुबिना पर पड़ती है ….और वो उसे वहा से उठाते हुआ ले जाता है ….काशी और सहजाद भागते हुए जंगल की तरफ बड़ते है ……और वहा ……उनका पीछा राजा धनवीर और उसके सेवक करते है ……..लेकिन अंत में सहजाद को घेर लिया जाता है …….और सहजाद शुबिना को नीचे उतार ता है ………राजा धनवीर सहजाद को मारने ही आ रहे होते है की तब शुबिना अपने पिता जी को रुक लेती है……..और कहती है ये सब खत्म करने के लिए और अपनी गलती मानने के लिए……….लेकिन राजा धनवीर नहीं मानता है और अपनी बेटी को रस्ते से हटा देता है …………..और वो खुद जाता है सहजाद को मारने वो तलवार से वार करता ही है की तबतक बाघ काशी राजा धनवीर के ऊपर कूद जाता है …तबतक सहजाद काशी को हटाता है …..और राजा धनवीर को माफ़ करदेता है और कहता है..” हम बस अपने काशी को लेने आये थे ….और अपनी बेगुनाई साबित करने और हमने कर दिया है ……और आपसे यही हम उम्मीद करते है की आप फिर से ये सब काम नहीं करेगे…….इतना कहकर सहजाद वह से चला जाता है तबतक शुबिना अपने पिताजी को उठाती है और कहती है ” बस पिता जी बस कबतक आप ऐसा करते रहेगे …..छोड़ दीजिये ये सब…….और सब कुछ सही कर दीजिये ……मै आपसे हाथ जोडकर विनती करती हो…..” इतना कहने पर शुबिना रोने लगती है तबतक राजा धनवीर को अपने गलती का एहसास होता है और वो उसके सर पर हाथ फेरते है और कहते है ” बेटी मुझे मेरी गलती का एहसास है पर आज मै इसकी शुरुवात आपसे करता हो……..आप सहजाद को से प्यार करती है तो आप उसके पास जाईये ….ये मेरी आज्ञा है ” शुबिना अपने पिता जी को मुख से ऐसा सुनकर बहुत खुश होती है और अपने पिताजी के पैर छुकर सहजाद के पास भागते हुए जाती है……..जंगल में ही .सहजाद उसको दिख जाता है और उसे रूकती है ……. और उसके पास जाकर कहती है …….
शुबिना — क्या आप मुझे नहीं ले जायेगे …..हम आपके साथ रहना चाहते है …..
सहजाद — पर क्यों …
शुबिना — क्यूंकि हम आपसे प्यार करते है …..
थोड़ी देर के लिए दोनों एक दुसरे को देखने लगते है ….
सहजाद — मैं तो यशोदा से प्यार करता हो किसी राजकुमारी शुबिना से नहीं ..
शुबिना– सहजाद मैं मानती हो मैंने गलती की आपसे अपनी पहचान छुपाकर पर ………
सहजाद — आप कुछ मत कहिये …..क्यूंकि मैंने हमेशा से यशोदा से ही प्यार किया ….और यशोदा इसी तरह मुझे जंगल मै मिलने आया करती थी ………..जैसे आप अभी आई है …….और आज यशोदा है मेरे साथ ……

सहजाद के इतना कहने पर शुबिना …मन ही मन समझ जाती है की सहजाद उससे प्यार करते है और …..वो ख़ुशी से सहजाद के गले लग जाती है……….और सहजाद भी शुबिना यानि अपनी यशोदा को अपना लेता है………..

ये थी जंगल के काशी की कहानी …….एक बाघ की कहानी ……
शालिनी शर्मा

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